Sunday, January 30, 2011

रश्मि जी के कमेन्ट पर दो बातें (प्रतिक्रया के तौर पर)


दखलंदाजी पर कि हुई पोस्ट मोटी मलाई पर सबकी नजर पर असीम की प्रतिक्रिया

सही कहा अलोक भाई, बीसीसीसीआई में भ्रस्टाचार के इतने अवसर देखकर सरकार की खोपड़ी ठनक गयी है और वहा भी अपना रेगुलेटर लगाकर भ्रस्टाचार के नए रेकार्ड्स बनाना चाहती है.

फिर रश्मि जी की प्रतिक्रिया

क्या बात कही है आपने ....
Alok ji! खेल तो खेल सरकार सीबीआई को भी रेगुलेट कर लेती है. बस नही कर पाती है तो भ्रस्टाचार को, मंहगाई को, गरीबी को, बेरोजगारी को और काले धन को............. ये वो सच है जिसका जवाब सरकार के पास बिलकुल नहीं है ...इस पर वो बगले झाकती नजर आएगी ..... its really controversial funda of govt.

हमारा संवाद

सोचता हूँ तो कभी कभी लगता है कि अगर हम एक समाज में रह रहे है तो कम से कम समाज वाला ढाचा तो होना ही चाहिए. मै अब तक जिस किसी सिद्धांत से सबसे ज्यादा इंस्पायर हुआ हूँ वो है डार्विन का सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट......मुझे हमेशा से उसकी बात सच लगती रही है ...मगर यह सच जंगल का है , जानवरों का है, मेरी गली में मैं जिन जिन कुत्तों को देखता हूँ यह उनका सच है ...मगर जैसे जैसे बड़ा हो रहा हूँ, समाज को करीब से देख रहा हूँ , वैसे वैसे लग रहा है कि हम सब भी अब तक एक जानवर ही हैं , एक बड़े वाले जानवर.

तो फिर अगर सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट ही सही है तो कैसी सरकार, कैसा समाजवाद और कैसी डेमोक्रेसी? अगर एक सरकारी पुलिस पब्लिक कि सुरक्षा नहीं कर सकती, एक सरकारी संस्था खेलों का हित नहीं कर सकती तो फिर हम क्यूँ सोचे कि सरकार का नियंत्रण रहे ...हम आसानी से प्राइवेट गार्ड रख कर भी तो काम चलाते हैं ना ..

1 comment:

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