कवितायें

आखिर मै ही क्यूँ परिंदा हूँ?

जिस गली में तेरे चर्चे है
अफ़सोस वहीँ का मै बाशिंदा हूँ

कोई दीमक हो गर तुम तो
मै दिल से नम हूँ मै शर्मिंदा हूँ

अनेकों शाजिसें हैं क्या सोचूं
बुरा हूँ या मै नेक बन्दा हूँ ?

शहर में तमाम आशियाने है
फिर आखिर मै ही क्यूँ परिंदा हूँ


अरे जाने दो ये दुनियादारी
ये क्यों नहीं कहते कि मै गंदा हूँ

चटका के दिल को तोड़ने वाले
गजब है! आज भी मै जिन्दा हूँ

खुश हो आखिर तुम खुश हो
खुश हो
आखिर तुम खुश हो
फिर तो अच्छा है
मैंने तुम्हारी इस ख़ुशी को कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा
अपनी मजाकिया बातों
नीचे से फट गयी अपनी जींस में
या फिर खुद पर बनाए किसी जोक में
एक पल को तो लगा कि कि तुम खुश हो
और तुम खुश थी भी
मगर कुछ देर में ही
नहीं कुछ दिनों बाद
मुझे मालूम पड़ा कि तुम खुश नहीं हो

समय बदलता गया
मौसम बदले , दुनिया भी बदली
साथ में थोडा तुम भी बदली
तुम्हारी खुशियों कि परिभाषा भी.
और तुम्हे खुश करना दिन पर दिन कठिन होता गया .
मैथ्स कि किसी एक्सरसाइज कि तरह ,
यू पी एस ई के किसी एक्साम कि तरह,
तुम्हारी खुशियों का स्टैण्डर्ड भी बढ़ गया,
मगर मैंने तुम्हारे इस लेवल को ,
एक अच्छे स्कालर कि तरह हमेशा से बीट किया.

एक पल को तो लगा कि मैंने पा लिया वो लक्ष्य,
और फिर तुमने तुमने भी तो यही कहा था .

मगर फिर अचानक तुम्हारा स्टैण्डर्ड और बढ़ गया
मेरी स्किल्स अब और नहीं बढ़ पायीं,

अब मै तुम्हे खुश भी नहीं रख पा रहा था,
तुम्हारे इस एक्साम को मै क्वालीफाई नहीं कर पाया ,
मालुम पडा मेरा काम्पटीसन टफ हो गया है
मेरा काम्पटीसन भी तो था तुम्हारे उस दोस्त से
जो तुम्हे हरदम खुश रखता था ,
जिसने तुम्हारा लेवल बढ़ा दिया था,
और जिसने तुम्हारी खुशियों कि सारी परिभाषाएं समझ रखी थी ।

तुम खुश हो,
आज तुम कितनी खुश हो ,
मगर मै भी खुश हूँ,
तुम सोंच सकती हो कि मै खुश क्यूँ हूँ,
मुझे मालुम है कि तुम ऐसा नहीं सोंचोगी ,
तुम्हारे पास इतना फालतू वक़्त नहीं है ,
फिर भी अगर मै ऐसा मान लूँ ,
तो मै खुश हूँ कि कोई तुम्हारे लेवल को बीट कर पाया,
तुम अप्राप्य नहीं हो,
मेरे जैसा ही कोई तुम्हे जीत चुका है ।
यह बात मेरे हौसले को जिन्दा रखती है,
और मै हमेशा खुश रहता हूँ ।

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