मच्छरों के दल में उस दिन एक खुशी की लहर दौड़ी जिस दिन मच्छरों की केमिकल लैबोरेटरी ने एक ऐसा रसायन तैयार कर लिया जिससे जानसन की मौत तय थी। मच्छरों के प्रधानमंत्री मास्कू ने इस रसायन को खुद ही जानसन के शरीर में पहुंचाने का जिम्मा लिया।
आमतौर पर जैसा होता है कि आदमी को मच्छर अपना दुश्मन समझता है, बिल्कुल वैसा यहां पर नहीं था। कुछ मच्छर उस इंसान को अपना दोस्त भी मान लेते, मगर यहां बात उनकी जिन्दगी की आ गई थी। वैसे आमतौर पर नर मच्छरों को इनसे कोई मतलब नहीं होता है। नर मच्छर तो केवल फूल पत्तियों के रस से जीवन निर्वाह कर लेते हैं।मानव जाति के किये गये किसी भी बड़े उलटफेर से उनका वास्ता बहुत कम बार ही पड़ता है। मगर इस बार मिस्टर जानसन के खिलाफ सारे मच्छर एकजुट थे। मिस्टर जानसन (मच्छरों के लिए सिर्फ जानसन), के खून में एक अजीब सा रसायन था। उनको जिस मच्छर ने काटा वह तुरन्त मौत के घाट उतर गया। छुटपन से ही जानसन ने यह रसायन सक्रिय हो गया था और यही कारण था कि जानसन का नाम मच्छर बिरादारी में बड़ी घृणा के साथ लिया जाता था। जानसन को सबक सिखाने के लिए न जाने कितने क्रांतिकारी मच्छर शहीद हो गये थे और न जाने कितने ही सक्रिय थे। उनकी मीडिया में आये दिन जानसन से सम्बन्धित लेख और सम्पादकीय निकलती रहती थी। उनमें जानसन को मच्छर जाति का विरोधी, क्रूर, सीरियल किलर और इस तरह की कई उपाधियों से नवाजा जाता और इसको पढ़ लेने के बाद नये मच्छरों का खून उबल जाता। प्रौढ़ मच्छर पहले से ज्यादा सतर्क हो गये थे और यही कारण था कि कुछ क्रान्तिकारी और सुसाइड केस मच्छरों को छोड़ कोई भी मच्छर मिस्टर जानसन के इर्द गिर्द नहीं घूमता था।
मिस्टर जानसन बिल्कुल वैसे नहीं थे जैसा कि मच्छरों के साहित्य में वर्णित था। वे तो बेहद ही नेकदिल और अहिंसा परस्त व्यक्ति थे। जब से उन्हें यह बात मालूम पड़ी थी कि उनका खून मच्छरों के लिए मौत का पैगाम लेकर आया है वे खुद को अधिक ढ़का हुआ रखते थे। दिन में लम्बा सा ओवरकोट पहनते थे। गले का कालर भी उठाकर रखते थे और ज्यादातर सिर ढका रखते थे। उन्हें अपनी इस असाधारणता पर दुख भी होता था और इसके लिए वह तरह-तरह के इलाज भी करा चुके थे। वह लगातार ऐसा करते रहे और तब तक किया जब तक कि उनको दवाईयों से इफेंक्शन नहीं हो गया। अब खुद को बचाकर रखना ही उसका उपाय था और वह अक्सर ऐसा ही करते थे। वे तब बहुत दुखी हो जाया करते जबकि इतने बचाव के बाद भी कोई न कोई मच्छर मर जाता। रात में वह मच्छरदानी लगाते थे और प्रयास करते कि कोई मच्छर उन्हें काटने न पाये।
इधर मच्छरों का क्रोध जानसन पर दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा था। मच्छरों को यह विश्वास हो चला था कि जानसन मच्छर जाति को खत्म कर देना चाहता है। अब तक मच्छरों के कई बड़े और कर्मठ नेता भी मिस्टर जानसन का शिकार हो चुके थे और मच्छरो ने जानसन को ठिकाने लगाने की अपनी योजना पर काम भी शुरू कर दिया था। मच्छरों के दल में उस दिन एक खुशी की लहर दौड़ी जिस दिन मच्छरों की केमिकल लैबोरेटरी ने एक ऐसा रसायन तैयार कर लिया जिससे जानसन की मौत तय थी। मच्छरों के प्रधानमंत्री मास्कू ने इस रसायन को खुद ही जानसन के शरीर में पहुंचाने का जिम्मा लिया। मगर यह खुशी तब शोक में बदल गयी जब उस रसायन को पीते ही प्रधानमंत्री मास्कू की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। जनता ने लैबोरेट्री पर पथराव कर उसे बन्द कर दिया और जानसन पर किया जा रहा शोध रोक देना पड़ा। प्रधानमंत्री की मौत से मच्छर समुदाय का खून उबल पड़ा। जानसन बच्चों का भी बिलेन बन गया। जानसन पर कई बड़ी फिल्में सुपरहिट रहीं जिनमें मशहूर विलेन जिमी, टाफू और सिनी ने जानसन का रोल किया। मच्छरों के बीच आये दिन जानसन का पुतला फूंका जाता और धरना प्रदर्शन होता। सरकार पर लगातार जानसन को मारने का दबाव बढ़ता जा रहा था। विपक्ष के हंगामें का एकमात्र विषय जानसन बन गया था।
इसी बीच अखबारों में एक अफ्रीकन मच्छर लिली के आने के खबर प्रकाशित हुई। इस स्टिंग आपरेशन के बाद पुलिस का ध्यान लिली पर पड़ा और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। अगने दिन की कोर्ट कार्यवाही के बाद उसे रिमाण्ड पर ले लिया गया। लिली से पुलिस ने कड़ी पूछतांछ की और पाया कि लिली अफ्रीकी देश जारा से आई है। उसकी लम्बी यात्रा का कारण उसकी एक असाधारण ताकत है। लिली को तुरन्त सरकार की कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया। कैबिनेट ने बातचीत के बाद लिली को इस शर्त पर छोड़ना चाहा कि वह मिस्टर जानसन को मारे। लिली ने जानसन वाली बात मानने से इंकार कर दिया। लिली पर जासूसी का मुकद्मा चलाया गया और जैसा कि मच्छर कानून में जासूसी के लिए मृत्युदण्ड वर्णित था लिली को दिया गया। अब अगले दिन लिली को मौत लगे लगाना ही था।
सरकार इस मौके को जाने देना नहीं चाहती थी इसलिए तत्कालीन मच्छर प्रधानमंत्री राना जेन स्वयं उससे मिलने पहुंचे। प्रधानमंत्री को देखते ही लिली ने झुककर सलाम किया। प्रधानमंत्री ने उसे बताया कि अगर वह जानसन वाली बात मान ले तो उसकी सजा माफ हो सकती है और वह इनाम की हकदार भी हो सकती है। मगर लिली अपनी जान बचाने के लिए किसी निर्दोष की हत्या करने को तैयार नहीं थी। उसे जब यह मालूम पड़ा कि जानसन एक हत्यारा है तो उसने अपनी शक्ति का इस्तेमाल करने का मन बना लिया।
मच्छर समुदाय के बच्चे-बच्चे तक यह बात पहुंच गई कि अब जानसन की मौत तय है और सभी इस बार पहले से कहीं अधिक सतर्क दिखाई दे रहे थे। लिली को रिहा कर दिया गया और उसे इस काम के लिए एक महीने का समय दिया गया। जानसन इन बातों से बिल्कुल बेखबर था और अपनी दैनिक दिनचर्या को व्यवस्थित बनाता हुआ जी रहा था। सुबह से शाम तक अपने शरीर को ढके रखने में ही उसका ध्यान रहता था और इसी वजह से लिली को काम को अंजाम देने का मौका नहीं मिल पाया था। एक दिन मिस्टर जानसन अपनी मच्छरदानी में आराम से लेटे हुए थे और नींद लेने के करीब पहुंचे ही थे कि एक मच्छर की गूंज उनके कानों में सुनाई दी। वह झटके से दूर हो गये और उस मच्छर से न काटने का आग्रह किया। लिली ने बताया कि वह कई दिनों की भूखी है और वह उसे काटकर अपना पेट भरना चाहती है। जानसन ने हंसते हुए बताया कि ऐसे तो वह अपना पेट फाड़ लेगी और मौत को गले लगा लेगी। जानसन ने लिली को भोजन दिया और बाद में कुछ फलों का रस और बियर का आनन्द भी। उस दिन लिली ने भरपेट खाना खाया। खाने के बाद लिली ने जानसन को काटने का मन बदल दिया। लिली ने जानसन को कई सारे गाने सुनाये और जानसन ने भी लिली को दुनिया की तमाम अजीब दस्तानें बतायीं। फिर दोनों ने अपनी-अपनी यात्राओं का बढ़ा-चढ़ा कर रोचक ढंग से वर्णन किया और वे अच्छे दोस्त बन गये। अब लिली और जानसन अधिकतर मिल लिया करते। जानसन जब भी आफिस जाता लिली भी उसके साथ होती। अक्सर ठण्ड में वह उसके ओवरकोट में छिपी रहती और फुर्सत मिलते ही बाहर निकलकर जानसन से बातें करती। कुछ ही दिनों में जानसन और लिली एक दूसरे की जिन्दगी का हिस्सा बन गये। अगर जानसन कभी बीमार पड़ जाता तो लिली उसका ख्याल रखती और जानसन भी लिली को उतना ही चाहता। जानसन तो कुछ दिनों में ही सही हो गया मगर लिली इस बीच कुछ परेशान रहा करती। उस पर आये दिन दबाव बढ़ता जा रहा था। कैबिनेट ने उसे कई बार दफ्तर तलब किया और मंत्रालय लगातार उस पर निगरानी बनाये हुये था। मीडिया भी लिली को लेकर तमाम अटकलें लगा रहा था। इधर कई दिनों से तंग आकर लिली ने अखबार पढ़ना छोड़ दिया था। वह उदास रहा करती थी। जानसन के पूछने पर वह हर बात को टाल जाती। जानसन इस उदासी के बीच लिली को खुश करने की भरपूर कोशिश करता मगर लिली और दुखी हो जाती। वह बस इतना कहती कि वे ज्यादा दिनों तक साथ नहीं रह सकते। जानसन यह सुनकर दुखी हो जाता और सोचता कि लिली को ऐसा क्यूं लगता है। लिली पर वह कभी दबाव नहीं बना पाता और लिली हमेशा उसकी इस बात को टाल जाती। अब लिली के पास एक दिन और था। लिली ने यह बात जानसन को बताई। जानसन ने लिली को सबसे अच्छे होटल का खाना खिलाया, दोनों ने साथ-साथ शराब पी और जानसन ने अपनी सबसे पहली वाली प्रेयसी के बारे में लिली को बताया। उसने यह भी बताया कि वह लिली को कितना प्यार करता है। अगले दिन की सुबह लिली जल्दी उठ गई। उसने जानसन को आखिरी गुड मार्निंग कहीं और बताया कि इसके बाद कोई लिली उसे गुड मार्निंग नहीं कहेगी। लिली और जानसन ने मिलकर आंसू बहाये और फिर लिली ने जानसन को काट लिया। जानसन को इस बात का पता नहीं चल पाया। उसे लिली से आग्रह किया कि वह उसे यह बताये कि वे आखिर क्यूं नहीं मिल सकते।
लिली पूरी तरह टूट चुकी थी। उसने जानसन से कहा कि वह उसे माफ कर दे। अगले पांच मिनट बाद वे एक दूसरे से जुदा हो जायेंगे। उसने बताया कि वह एक अद्भुद शक्ति की मालिका है। वह जिस भी इंसान को काट लेती है, उसकी कुछ मिनटों में ही मौत हो जाती है। फिर वह इंसान केवल इसी शर्त पर बच सकता है कि लिली उसे दोबारा काटे। उसने बताया कि अफ्रीका में उसने कई लोगों का काटा था। उसे ऐसा नहीं मालूम था और लोगों की जाने लगतार जा रही थीं। मनुष्यों का जब इस बात का पता चला तो वह मच्छर जाति से घृणा करने लगे। वहां मनुष्यों ने बड़े स्तर पर मच्छरों का विनाश कर डाला। कई करोड़ मच्छर मारे गये और समूची मच्छर जाति पर संकट आ गया। उसे अफ्रीका छोड़ देना पड़ और वह यहां आ गई।
जानसन इस बात को बड़ी गम्भीरता से सुन रहा था और यह समझने की कोशिश कर रहा था कि इन बातों का लिली के जाने से क्या सम्बन्ध है। क्या अफ्रीकी मच्छरों ने उसे वापस बुला लिया है या लिली अपने परिवार से मिलने के लिए जबरन अफ्रीका में घुसना चाहती है। तभी लिली की एक बात ने उसका ध्यान भंग कर दिया। उसने बताया कि वह उसे काट चुकी है। जानसन यह सुनकर डर गया। उसे लाग कि उसका सिर घूम रहा है और उसके सामने अंधेरा छा गया। उसको अपनी दोस्ती की इतनी भयानक सजा मिलने वाली थी उसने नहीं सोचा था। उसको लिली पर बहुत गुस्सा आ रहा था। वह लिली को मार देना चाहता था। मगर उसके प्यार ने उसे ऐसा न करने पर मजबूर कर दिया था। लिली बोलती जा रही थी। वह कह रही थी कि वापस आने पर उसे पकड़ लिया गया और उसे मृत्युदण्ड हो गया। उसने बताया कि आज उसे मारने पर बहुत सारा इनाम मिलेगा। वह यहां की कैबिनेट में मंत्री बना दी जायेगी और सरकारी सुविधायें और ठाठ बाट उसे मुहैया हो जायेंगे।
इतना बोलते-बोलते लिली गिर पड़ी। अब वह उड़ नही पा रही थी। जानस ने उसे हाथ पर उठा लिया। लिली ने जानसन के फीके चेहरे की ओर देखा और फिर मुस्कराई, ‘‘जानसन, मेरे प्यारे जानसन, यह सब मैंने मच्छरों की भलाई के लिए किया। मुझे माफ कर देना जानसन। वैसे एक बात बोलूं जानसन, मैंने तुम्हारा सारा जहर चूस लिया है। अब मच्छरों को तुमसे कोई खतरा नहीं है। दरअसल मैंने तुम्हें दोबारा काटा था। अब तुम एक आम आदमी हो जानसन। अलविदा, आखिरी अलविदा! दुनिया के सबसे प्यारे इंसान को लिली का आखिरी अलविदा।’’
By
Alok Dixit
मर्जाद
उस दिन नन्हें फुदकता हुआ घर आया। रोजी रोटी का जुगाड़ तो हुआ। सुनकर आरती ने नन्हे की गर्दन में बाहें डाल दीं ओर नन्हें ने भी उसे जोर से उठा लिया। मगर थोड़ी ही देर में ख्याल आया कि एक महीने तक क्या करेंगे एक वक्त का खाना तो चाहिए ही होगा। सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया।
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Image by- Arti Honra: www.artihonrao.net |
बेटा छोड़ दो उसे। मैं कहती हूँ फिर बाद में पछतावा किये न होगा। हमारी सारी मर्जाद (इज्जत/ शान) बिगड़ जायेगी। बुढ़िया के स्वर लगातार तेज होते जा रहे थे। नन्हे के लिए यह सब सहनीय हो सकता था अगर वह उसे छोड़ सकता। कैसे छोड़ दूं । व्याह करके लाया हूँ। इन्हीं अम्मा ने पक्का किया था रिश्ता। अग्नि के सामने सात फेरे लगाये हैं। सारी कसमों की साक्षी रही हैं अग्नि। ये बिझुकी वाली बात क्या खुल गई जीना दूभर हो गया। आखिर कौन सी इतनी बड़ी बात है। फिर बड़ी बात भी हो तो इसमें आरती का क्या कुसूर। वो बेचारी तो वैसे ही पागल हुई जाती है। अम्मा तो जैसे निगल जाना चाहती हों उसको। बिझुकी आरती की छोटी बहन है। पिछले इतवार को घर के किसी काम से निकली थी। लौटते शाम हो गयी। जाड़ों का समय था और जाड़ो में तो वैसे ही शाम होते अंधेरा हो जाता है। गांव के ही कुछ आवारा लड़कों का शिकार हो गई बेचारी। पास के लखनू चाचा न निकलते तो न जाने कमीने कब छोड़ते उसे। अब गांव में ढिढोरा पिट गया। इस सब से अम्मा की मरजाद कम हुई जाती है। आखिर रिश्ते नाते बनाये किस लिये जाते हैं। नन्हें भी दादा अम्मा का अल्टीमेटम सुन चुका था- "बहू को छोड़ दो या लेकर निकल जाओ इस घर से"।
अन्धेरा होते.होते निकलने का मन बन गया नन्हें का। आरती को लेकर निकल पड़ा घर से। साथ में कुछ कपड़े शादी की एल्बम और अपनी एम0ए0 तक की डिग्रियां और मंजिल का कुछ पता नहीं। कुछ ही देर में स्टेशन पहुंच गये दोनों। आरती भी पढ़ी लिखी थी प्यार भी बहुत करती थी नन्हे को। “कहां चलोगे मेरे पीछे! काहे अम्मा दादा से बैर लेते हो”, और नजरे झुकाकर रोने लगी। नन्हें को इस समय अपनी मंजिल ही दिखाई देती थी। दिल्ली जाने वाली गाड़ी पर टिकट लेकर बैठ गया। जेब में अब एक हजार रूपये और टिकट पड़ा था। सारा सफर यूं ही गुमशुम कट गया। दिल्ली स्टेशन पर पहुंचते ही सवेरा हो गया। हांथ मुंह धोकर दोनों आगे बढ़े। अब तक आरती कुछ खुल चुकी थी। उसकी सिसकियां बन्द हो गयीं थीं। जान चुकी थी कि इस कठिन घड़ी में उसका पति उसके साथ है। दोनों ने खाना खाया। दिल्ली में दोनों की दूर-दूर तक कोई जान पहचान नहीं थी। नन्हे को आज ही रहने का ठिकाना चाहिए था साथ ही कोई रोजगार भी। कोई काम हो कैसा भी हो क्या करना। बस फिलहाल तो रोजी कमानी है। आरती भी पढ़ी लिखी थी। कुछ तो कर ही सकती थी। अभी किसी के घर खाना भी बनाना पड़े तो क्या हर्ज है। खाना वह अच्छा बना लेती थी।
खैर कमरे की तलाश शुरू हुई। कोई घर उनको कमरा देने को तैयार नहीं था। तरह.तरह की पूछतांछ। लगता है भाग कर आये हो। घर बार कहां है। अजनबियों पर कैसे भरोसा हो। नन्हे ने अपनी डिग्रियां दिखाई पर घर की औरतों को इससे क्या मतलब। नन्हें की मिन्नते काम न आईं। फिर उसे अपनी शादी की एल्बम दिखाई तो कहीं जाकर कमरा मिला। न ओढ़ने को था न बिछाने को। उस दिन जमीन पर ही सो लिया दोनों ने। खाना भी नहीं खाया। अगने दिन उसी शर्ट को जो पिछले दिन धोकर सुखाई थी, पहनकर नन्हें उर्फ नन्द कुमार शर्मा कई स्कूलों का चक्कर काटाता रहा। एक स्कूल में आठ सौ माहवारी में तय हुआ।
उस दिन नन्हें फुदकता हुआ घर आया। रोजी रोटी का जुगाड़ तो हुआ। सुनकर आरती ने नन्हे की गर्दन में बाहें डाल दीं ओर नन्हें ने भी उसे जोर से उठा लिया। मगर थोड़ी ही देर में ख्याल आया कि एक महीने तक क्या करेंगे एक वक्त का खाना तो चाहिए ही होगा। सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया। मकान मालिक दयालु था। रोटियां और शब्जी भिजवा दी। उस बच्चे से मालूम पड़ा कि वह सातवीं कक्षा में है। मकान मालिक ने ट्यूशन की पेशकश की। आरती का वह पहला ट्यूशन था।
उसके बाद आरती ने कितने बच्चे पढ़ाये और नन्द कुमार शर्मा ने फिर कितने स्कूल बदले कहना मुश्किल था। आज चार साल बीत गये हैं। आरती ने अपना आरती ट्यूटोरियल्स खोल लिया है और नन्द कुमार शर्मा के0पी0 पब्लिक स्कूल में लेक्चरर हैं। अब दोनों जून की रोटी आराम से खाते हैं वे।
पिछले चार सालों में काम और सिर्फ काम किया है दोनों ने। भाग्य ने भी अच्छा साथ दिया। दोनों ही परिवार से दूर रहकर अपने कामों में लगे रहे। चिन्ता रहती थी कि जाने वहां क्या-क्या हो चुका होगा। सब लोग हमें ढूंढते होंगे। आज दोनों को अपने नये मकान में सबकी बहुत याद आ रही है। नन्हे ने शहर के पाश इलाके में यह फ्लैट किराये पर लिया है। पर आज दोनों को यहां अच्छा नहीं लग रहा है। दोनों जब दिल्ली आये थे तब ही ठान लिया था कि अब घर की बातें नहीं करेंगे। पर न जाने क्यूं आज दोनों ही भावावेश में बह उठे। नन्हें का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसे लगा जैसे अम्मा और दादा उसे बुला रहे हैं। नन्हे के हाथ अनायस ही फोन के रिसीवर पर पहुंच गये। नम्बर मिला दिया। घण्टी बजते ही उसका हृदय धाड़.धाड़ बजने लगा। ‘कौन’, फोन पर अम्मा थी। अम्मा मैं नन्हें। हां बेटा तू घर लौट आ। मुझे बहू से अब कोई गिला नहीं। भगवान का लाख-लाख शुक्र है, घर की मर्जाद बच गई। लौट आ बेटा बिझुकी मर गई है।
आलोक दीक्षित
Alok Dixit
Journalist
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