यमन में अठारह दिनों तक चले संघर्ष के बाद जिस तरह से मोनार्ची का अंत हुआ है उससे समूचे अफ्रीका में भूचाल आ गया है. पड़ोसी देशों में भी इस बात को लेकर ये आशा जगी है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शनों से तख्ता पलट किया जा सकता है . प्रदर्शनों की जो शुरूआत पिछले दिनों यमन और अल्जीरिया से हुई वो भले ही तत्काल कोई असर नहीं छोड़ पायी मगर उसका असर अब बहरीन, लीबिया, जार्डन और तुर्की में देखने को मिल रहा है.उत्तर भारत के गावों में एक कहावत कही जाती है- "बुढ़िया के मरने का डर नहीं है, डर तो इस बात का है कि यम परक # जायेंगे' . टुनिशिया, और मिस्र की क्रांतियों से लगता है मानो अफ्रीका में यम परक गए हो !
पिछले तीन दिनों में ही तुर्की में लगभग सौ लोगों की मौत हो चुकी है और प्रदर्शन तेज होता जा रहा है. बहरीन में भी परिस्थितियाँ बेकाबू है जहाँ शुक्रवार को नमाज के बाद लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा और सेना को आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े. यमन में पहले ही दबाव में आकर 30 सालों से सत्ता में बैठे प्रेसीडेन्ट अली अब्दुल्ला सालेह ने २०१३ में गद्दी छोड़ देना का ऐलान कर दिया है . जार्डन में भी राष्ट्रपति शाह अब्दुल्ला द्वितीय की शक्तियों को सीमित करने की मांग जोरों से उठ रही है. तुर्की में देशद्रोह के आरोपों में उम्रकैद की सजा झेल रहे अब्दुल्ला की रिहाई की मांग जोर पकडती जा रही है . यही हाल लीबिया का भी है. वहां कर्नल मोहम्मद गद्दाफी की ४० सालों की हुकूमत से लोग त्रस्त आ गए हैं.
ट्यूनीशिया में मरी बुढ़िया से सारे अफ्रीका में यमों की आवाजाही तेज हो गयी है , देखना होगा कि अरब में कितनी बुढ़िया मरती हैं और यम अफ्रीका से रास्ता बदल कर इरान, अफगानिस्तान और पकिस्तान होते हुए चाइना तक पहुँचते है या नहीं ?
आलोक दीक्षित
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# ( Its not the matter that Grand mother died, the matter is that Yamraj will know this place).
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