इसको मजे लेने के लिए ना पढ़ें, कहानी सोलहों आने सच है और इसलिए पूरी तरह बोरिंग है ..मै इसमें कनक्लुजन भी नहीं दूंगा
सपने दो तरह के होते है . एक जो खुली आँखों से देखे जाते हैं और दूसरे जो आँखे बंद करके. इंडिया में हर लड़की बस एक ही सपना देखती है कि दुनिया कि सबसे ज्यादा खुशियाँ उसके पास हों और कोई सपनो का राजकुमार आकर उसे दूर देश में कही वादियों के बीच ले जाये . हो सकता है कि आप एक लड़की हों और इस बात से इत्तेफाक ना रखती हों कि उज लड़की का बस यही सपना होता है. मगर मै तो बस यह कर रह हूँ कि सपने सब देखते है, और कम से कम इत्याह तो तय ही है कि कि दुनिया का कोई भी इंसान अबने बारे में बुरा नहीं सोंचता होगा. अब अगर यह सच है तो मै जिस लड़की कि कहानी सुना रह हूँ वो उन सपनों के एकदम उलट है . वो लड़की है आरती सरन.
आरती सरन भी बचपन से एक ही सपना लेकर बड़ी हो रही थी और वो था कि एमबीए करने के बाद वो ढेर सारा पैसा कमाएगी और फिर मायानगरी में जाकर फिल्मों में एक्टिंग के लिए ट्राई करेगी. वो सुन्दर थी और पड़ने में काफी तेज भी थी. उसके पिता प्रताप भी आरती को लेकर ढेर सारी उम्मीदें पाले बैठे थे क्यूंकि उनकी तीन बेटियों में आरती ही सबसे होनहार थी. मगर तभी आरती कि जिंदगी में एक तूफ़ान सा आ गया. उसके सपनो पर तेज़ाब पड़ गया. वो बुरी तरह झुलस गयी.उसका चेहरा जो अब तक बहुत सुन्दर था कुछ ही मिनटों में दुनिया के सबसे खराब चेहरों से भी खराब चेहरा बन गया. राह चलते कुछ लड़कों ने उस पर तेज़ाब डाल दिया था. उसका चेहरा बुरी तरह झुलस गया और वो हमेशा हमेशा के लिए दुनिया की सबसे बदसूरत लड़की बन गयी.
हर केस की तरह यहाँ भी पुलिस ने मामले की रिपोर्ट दर्ज कर ली, मुख्य अभियुक्त अभिनव और उसके दो साथियों के खिलाफ पुलिस कि जांच शुरू हुई . अभिनव एक आयकर आयुक्त का बेटा था इसलिए लगातार जांच के पहलू बदलते रहे . पुलिस और प्रसाशन द्वारा अभिनव को बचाने की हर संभव कोशिस की गयी . लोकल मीडिया ने मामले को लगातार लाइमलाईट में रखा और प्रशासन पर लागतार दबाव बनाए रखा . बावजूद इसके पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में ढेर सारी खामियां छोड़ दी जिससे अभियुक्त को हाईकोर्ट से सती मिल गया. अभिनव इस बीच लगातार बचता रहा और उसने पुणे से एमबीए कर किया और फिर अमेरिका जाकर जॉब करने लगा. इन्ही सब के बीच उसकी शादी भी हो गयी और वो एक खुशहाल जिन्दगी जीता रहा. दूसरी तरफ आरती और उसकी पिता इलाज के लिए हर जगह भटके. कानपुर से लखनऊ और फिर दिल्ली और इसके बाद मुंबई और फिर पुणे. प्रताप सरन हर जगह गए और हर कोशिश की कि उनकी बेटी को दर्द से कुछ राहत मिल सके. इस बीच उन्होंने अपनी पारिवारिक संपत्ति बेंच डाली, नौकरी से रिटायरमेंट ले लिया और कानपूर छोड़कर ग्वालयर शिफ्ट हो गए. आये दिन अस्पतालों और कचहरी के चक्कर लगाते लगाते वे इतने परेशान हो गए कि उन्होंने आरती को न्याय मिलने की आशा ही छोड़ दी. घर से ही उन्होंने तमाम महिला संगठनों को लेटर लिखा, सोनिया गाँधी को लेटर लिखा और भारतीय महिला आयोग को भी लेटर लिखा . प्रताप बाते है कि, "एक समय तो हमने ये आशा ही छोड़ दी थी कि हमें न्याय भी मिल पायेगा. कानपुर में मेरा जीना ही दूभर हो गया था. आयेदिन हम पर समझौतों के तमाम दबाव पड़ रहे थे. जब मैंने इनकार कर दिया तो मुझे अलग अलग तरीकों से परेशान किया जाने लगा. आखिरकार हारकर मैंने कानपुर ही छोड़ दिया और ग्वालियर में अपने रिश्तेदारों के साथ रहने लगा."
कहानी बाद में लम्बी और बोरिंग होती गयी, वही न्याय के लिए भटकना, वही कोर्ट कचहरी के चक्कर, वही आपरेशंस, पहला वाला, दूसरा वाला, फिर तीसरा, फिर चौथा, फिर ना जाने कितने,और इन्सबके बीच आप्रेसंस के खर्चे. कहानी इतनी बोर हुई को लोगों को मजा आना बाद हो गया, लोगों ने सहानुभूति की मात्रा कम कर दी, मीडिया को कहानी पुरानी लगने लगी. अब तो वकील साहब भी चिडचिडाने लगे थे, लोगों ने फोन अटेंड करने बंद कर दिए थे ...कहानी काफी बोरिंग थी ना .
( अभी चलती रहेगी)
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