कल मिस्र में मुबारक के गद्दी छोड़ देने के बाद और अफ्रीकी देशों में अचानक आयी क्रान्तियों के बाद देश दुनिया में लगातार यह कयास लग रहे हैं कि अफ्रीका में एक बड़ा बदलाव आयेगा. हाल ही में जिस बदलाव की बात की जा रही है वह है यमन. राजधानी सना में कुछ दिनों पहले बुधवार के दिन जिस तरह विपक्षी पार्टियों ने विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया था और हड़बड़ी में प्रेसीडेन्ट अली अब्दुल्ला सालेह ने 2013 में बिना किसी उत्तराधिकार के गद्दी छोड़ने का ऐलान कर दिया था उससे देश दुनिया को यह लगने लगा कि मिस्र के बाद अब यमन ही स्वतंत्रता पाने वाला अगला देश होगा.
मगर अगर अफ्रीका के इतिहास पर गौर करें तो सह साफ समझ आ जायेगा कि यमन की मुसीबतें कम नहीं हैं. यमन अफ्रीका के सबसे गरीब देशों में से एक है और प्रेसीडेन्ट अली अब्दुल्ला की जड़ें वहां काफी मजबूत बताई जातीं हैं. वैसे इसका एक उदाहरण बुधवार के बाद हुये प्रदर्शन में भी मिला जब 40 हजार की भीड़ सना यूनिवर्सिटी पर एकत्र हुयी मगर वहां न तो कोई गर्मागर्मी हुयी और न कोई बड़ी मांग. दोपहर के बाद ही सड़कों पर सन्नाटा पसर गया और प्रदर्शनकारी नदारद रहे. खुद आयोजकों नें प्रदर्शनकारियों से यह मांग की कि वे वे पोस्टर उतार दें, बैनर फोल्ड कर लें और घर लौट जायें. विपक्ष की कमजोरी और यमन के पिछड़पन के कारण अभी संम्भानायें यहीं हैं कि क्रान्ति आने में अभी देर लगेगी.
{Photo:- BBC Hindi}
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