
मगर अगर अफ्रीका के इतिहास पर गौर करें तो सह साफ समझ आ जायेगा कि यमन की मुसीबतें कम नहीं हैं. यमन अफ्रीका के सबसे गरीब देशों में से एक है और प्रेसीडेन्ट अली अब्दुल्ला की जड़ें वहां काफी मजबूत बताई जातीं हैं. वैसे इसका एक उदाहरण बुधवार के बाद हुये प्रदर्शन में भी मिला जब 40 हजार की भीड़ सना यूनिवर्सिटी पर एकत्र हुयी मगर वहां न तो कोई गर्मागर्मी हुयी और न कोई बड़ी मांग. दोपहर के बाद ही सड़कों पर सन्नाटा पसर गया और प्रदर्शनकारी नदारद रहे. खुद आयोजकों नें प्रदर्शनकारियों से यह मांग की कि वे वे पोस्टर उतार दें, बैनर फोल्ड कर लें और घर लौट जायें. विपक्ष की कमजोरी और यमन के पिछड़पन के कारण अभी संम्भानायें यहीं हैं कि क्रान्ति आने में अभी देर लगेगी.
{Photo:- BBC Hindi}
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