Sunday, March 20, 2011

राह का रोड़ा


राह का रोड़ा,
टकराता है कई क़दमों से,
और  बढ़ जाता है आगे,
उन अनगिनत ठोकरों से.
मीलों चला जाता है सिर्फ ठोकरें खाकर
और फिर आ जाता है
किसी पथिक के नीचे,

या कर देता है जख्मी
राह के किसी राही को.

कई वाहनों को एक पल में तबाह कर देता है
और ले लेता है बदला उन्लाखों ठोकरों का


मगर जब वही रोड़ा
दिखता है किसी शिल्पी को
तो ले आता है वो उसे अपने साथ
और दे देता है उस रोड़े को,
एक ऐसा रूप, जो साकार करता है सपने
लाखों मनुष्यों के
और ख़त्म कर देता है उस सिलसिले को
जो ना जाने कब से चला आ रहा था
भगवान् सा यह रोड़ा बिन वजह ही सबको सता रहा था

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