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Monday, March 7, 2011

International Woman's Day- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक प्रस्तुति

International Woman's Day is celebrated on 08 March every year.

 ८ मार्च 2011 यानि आज हमें  अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस/International Woman's Day मनाते हुए सौ साल पूरे हो जायेंगे. समूचे विश्व में लाखों व्याखान और सम्मान समारोहों का दौर चरम पर होगा और चीन, अमेरिका, रूस, और मेक्सिको जैसे तमाम देशों में लोग सरकारी छुट्टियों का भरपूर आनंद ले रहे होंगे. भारत भी दुनिया के दूसरे किसी देश से पीछे नहीं रहेगा. सरकार हमें यह बताने से बिलकुल नहीं चूकेगी कि इस देश की राष्ट्रपति महिला है, लोकसभा स्पीकर महिला है, राजधानी की मुख्यमंत्री महिला है, सबसे बड़े राज्य की मुखिया भी महिला ही है. देखा जाये तो देश की सबसे बड़ी पार्टी की सुप्रीमो महिला है और देश के सबसे बड़े विपक्ष की नेता भी एक महिला ही है. भारत आज आठ तारीख को इन उपलब्धियों के साथ देश को यह भरोसा दिलाने में जुटा होगा कि भारत महिला प्रधान देश हो चुका है.... महिलाएं यहाँ हर दिशा में आगे बढ़ रही हैं.

                  ऊपर लिखे हुए नामों को गिनकर सरकार यह भी सिद्ध करेगी कि महिलाओं की स्थिति भारत में सबसे अच्छी है और सबसे अच्छी न सही तो कम से कम सम्माननीय तो जरूर ही है . मगर जब इस महिला प्रधान देश में महिलाओं के नाम पर महिलाओं को ही गुमराह किया जा रहा होगा तब इसबात का जिक्र तक नहीं होगा कि यह वही भारत है जहां सबसे ज्यादा महिलाओं की भ्रूण ह्त्या होती है और जिसके कारण भारत का सेक्स रेसिओ विश्व के 1045 के मुकाबले 927 महिला प्रति 1000 व्यक्ति पर आ गया है . जब हम बता रहे होंगे कि देश के सबसे बड़े राज्य कि मुखिया एक महिला है तो हम यह बताना बिलकुल भूल जायेंगे उस राज्य में महिलाओं कि दशा किस हद तक सोचनीय है. हम यह भी नहीं बताएँगे कि महिला मुख्यमंत्री वाले इस राज्य में महिलाओं का अनुपात 898 क्यूँ रह गया है और इसी राज्य में हर वर्ष लगभग 2000 लडकियां रेप का शिकार क्यूँ हो जाती हैं. हम फक्र करेंगे उस महिला प्रधान देश पर जिसकी राजधानी ही दुनिया की सबसे असुरक्षित लोकतान्त्रिक राजधानियों में से एक है जहाँ हर वर्ष लगभग 600 रेप केसेस रिकार्ड होते हैं. वह राजधानी जिसकी मुखिया भी एक महिला है.

                       अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस/International Woman's Day पर हम इरोम शर्मीला को याद नहीं करेगे जो पिछले दस सालों से लगातार भूख हड़ताल पर है. जिसने हत्या कि वकालत करने वाले क़ानून का विरोध गाँधी के अंदाज में किया और यह भूल गयी कि यह देश अब गाँधी का देश नहीं बल्कि परिवारवादी गांधियों का देश बन गया है. हम नार्थ ईस्ट की उन महिलाओं को भी याद नहीं करेगे जिन्हें इस कदर उत्पीडित किया गया कि वे सड़कों पर नंगे बदन 'इन्डियन आर्मी रेप मी,रेप मी ' चिल्लाते हुए उतर आयीं... क्या उनके उत्पीडन के बारे में हम इंटरनेसनल वीमेंस डे पर बात करेंगे. क्या हमारे पास जेसिका लाल केस और अरुषी हत्याकांड का कोई जवाब होगा? क्या हम ऐसे किसी उदाहरण से इतर कल्पना चावला या किरण बेदी जैसे नामों से ही काम चला ले जायेंगे? क्या हम विमेंस डे को सच में महिला दिवस के रूप में मना सकेंगे? .........मै तो कहूँगा शायद नहीं !!!!!!!!!!!!

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